Banke Bihari Mandir Trust: जन्माष्टमी से 3 दिन पहले उत्तर प्रदेश विधानसभा ने बांके बिहारी मंदिर निर्माण अध्यादेश और बांके बिहारी कॉरिडोर विधेयक को मंजूरी दे दी है।
इसके साथ ही मथुरा स्थित इस प्रसिद्ध मंदिर के प्रबंधन, संरक्षण और श्रद्धालुओं की सुविधाओं को आधुनिक बनाने का रास्ता साफ हो गया है।
आइए जानते हैं कि इस अध्यादेश में क्या प्रावधान हैं और यह मंदिर प्रशासन को कैसे बदलेगा…
बांके बिहारी मंदिर अध्यादेश: मुख्य बिंदु
1. नए ट्रस्ट का गठन होगा
- अध्यादेश के तहत श्री बांके बिहारी मंदिर न्यास बनाया जाएगा, जो मंदिर के प्रशासन, चढ़ावे और संपत्ति का प्रबंधन करेगा।
- ट्रस्ट में कुल 18 सदस्य होंगे – 11 मनोनीत और 7 पदेन सदस्य।
- मनोनीत सदस्यों में वैष्णव, सनातन और गोस्वामी परंपरा के विद्वान शामिल होंगे।
- पदेन सदस्यों में मथुरा के जिलाधिकारी, वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक जैसे अधिकारी शामिल होंगे।
- सभी ट्रस्टी सनातनी हिंदू होंगे और उनका कार्यकाल 3 साल का होगा।
2. ट्रस्ट के अधिकार और जिम्मेदारियां
- मंदिर की सभी संपत्तियों (मूर्तियाँ, आभूषण, दान, हुंडी, बैंक ड्राफ्ट) पर ट्रस्ट का नियंत्रण होगा।
- 20 लाख रुपये तक की संपत्ति खरीदने-बेचने का अधिकार ट्रस्ट के पास होगा, लेकिन इससे अधिक के लिए सरकार की मंजूरी जरूरी होगी।
- पूजा पद्धति और अनुष्ठानों में कोई हस्तक्षेप नहीं किया जाएगा, यह स्वामी हरिदास की परंपरा के अनुसार चलेगा।
- पुजारियों की नियुक्ति, वेतन और दर्शन का समय भी ट्रस्ट तय करेगा।

3. श्रद्धालुओं के लिए नई सुविधाएं
- वरिष्ठ नागरिकों और दिव्यांगों के लिए अलग दर्शन व्यवस्था।
- प्रसाद वितरण, पेयजल, विश्राम कक्ष, लाइन मैनेजमेंट की बेहतर व्यवस्था।
- गौशाला, धर्मशाला, होटल और प्रदर्शनी कक्ष जैसी आधुनिक सुविधाएँ विकसित की जाएंगी।

अध्यादेश पर विवाद और कोर्ट की भूमिका
इस अध्यादेश को लेकर कुछ विवाद भी सामने आए हैं:
- सुप्रीम कोर्ट और इलाहाबाद हाईकोर्ट में इसकी वैधता को चुनौती दी गई है।
- 4 अगस्त 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने एक समिति बनाई थी, जिसके अध्यक्ष पूर्व जस्टिस अशोक कुमार हैं।
- मंदिर के वर्तमान सेवायतों (सेवाधिकारियों) ने अध्यादेश के खिलाफ याचिका दायर की है।

सरकार का उद्देश्य क्या है?
सरकार का कहना है कि यह अध्यादेश मंदिर के प्रबंधन में पारदर्शिता और बेहतर सुविधाएं देने के लिए लाया गया है।
इसका मकसद मंदिर की संपत्ति पर कब्जा करना नहीं, बल्कि धार्मिक प्रथाओं को बनाए रखते हुए श्रद्धालुओं की सुविधा बढ़ाना है।