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सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में वोटर लिस्ट रिवीजन पर रोक लगाने से किया इनकार, अगली सुनवाई 28 जुलाई को

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Nisha Rai
Nisha Rai
निशा राय, पिछले 13 सालों से मीडिया के क्षेत्र में सक्रिय हैं। इन्होंने दैनिक भास्कर डिजिटल (M.P.), लाइव हिंदुस्तान डिजिटल (दिल्ली), गृहशोभा-सरिता-मनोहर कहानियां डिजिटल (दिल्ली), बंसल न्यूज (M.P.) जैसे संस्थानों में काम किया है। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय (भोपाल) से पढ़ाई कर चुकीं निशा की एंटरटेनमेंट और लाइफस्टाइल बीट पर अच्छी पकड़ है। इन्होंने सोशल मीडिया (ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम) पर भी काफी काम किया है। इनके पास ब्रांड प्रमोशन और टीम मैनेजमेंट का काफी अच्छा अनुभव है।

Supreme Court On Bihar Voter List: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार, 10 जुलाई को बिहार विधानसभा चुनाव से पहले मतदाता सूची (वोटर लिस्ट) के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) पर रोक लगाने से इनकार कर दिया।

कोर्ट ने चुनाव आयोग को निर्देश दिया कि वह आधार कार्ड, वोटर आईडी और राशन कार्ड को भी पहचान के तौर पर स्वीकार करे।

वोटर लिस्ट रिवीजन पर अदालत में करीब 3 घंटे सुनवाई हुई।

अब इस मामले में अगली सुनवाई 28 जुलाई को होगी।

याचिकाकर्ताओं का आरोप: नागरिकता की जांच गलत

इस मामले में राजद सांसद मनोज झा, TMC सांसद महुआ मोइत्रा समेत 11 लोगों ने याचिकाएं दाखिल की थीं।

उनका आरोप था कि चुनाव आयोग वोटर लिस्ट की समीक्षा करते हुए नागरिकता की जांच कर रहा है, जो कानून के खिलाफ है।

उन्होंने कहा कि यह प्रक्रिया नियमों को दरकिनार करके की जा रही है और इससे कई वैध मतदाताओं के नाम सूची से हट सकते हैं।

याचिकाकर्ताओं की आपत्तियां:

  1. नागरिकता की जांच अनावश्यक: वोटर लिस्ट में नाम जोड़ने या हटाने के लिए नागरिकता साबित करना जरूरी बना दिया गया है, जो कानून के खिलाफ है।

  2. दस्तावेजों में भेदभाव: 2003 की वोटर लिस्ट में शामिल लोगों को नागरिकता प्रमाण देने की जरूरत नहीं, जबकि नए आवेदकों को यह बोझ उठाना पड़ रहा है।

  3. समय की कमी: चुनाव नजदीक होने के कारण, अगर किसी का नाम काट दिया जाता है, तो उसके पास अपील करने का समय नहीं होगा।

सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से पूछा, 

“आप नागरिकता के मुद्दे में क्यों पड़ रहे हैं? यह गृह मंत्रालय का काम है। अगर आप वोटर लिस्ट में नाम शामिल करने के लिए नागरिकता को कसौटी बनाएंगे, तो यह एक बड़ा मुद्दा होगा।”

सुप्रीम कोर्ट की चिंता: समय सीमा और अपील का अधिकार

जस्टिस धूलिया ने कहा,

“समस्या प्रक्रिया में नहीं, बल्कि टाइमिंग में है। यह काम चुनाव से महीनों पहले होना चाहिए था।”

सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग (EC) से मतदाता सूची में संशोधन को लेकर तीन अहम सवालों का जवाब मांगा है।

  1. क्या चुनाव आयोग के पास मतदाता सूची में बदलाव करने का अधिकार है?
  2. इसके लिए क्या प्रक्रिया अपनाई जाती है?
  3. इसमें कितना समय लगेगा?
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चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट को भरोसा दिलाया 

इस पर चुनाव आयोग ने जवाब दिया कि “बिना सुनवाई के किसी का नाम मतदाता सूची से नहीं हटाया जाएगा।” 

आयोग ने कहा कि वह सिर्फ आधार कार्ड ही नहीं, बल्कि अन्य दस्तावेजों को भी स्वीकार करेगा।

चुनाव आयोग ने ये भी कहा कि समय के साथ मतदाता सूची को अपडेट करना जरूरी होता है, ताकि नए मतदाताओं को जोड़ा जा सके और गलत नामों को हटाया जा सके।

हालांकि, आयोग ने स्पष्ट किया कि आधार कार्ड अकेले नागरिकता का प्रमाण नहीं है

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28 जुलाई को होगी अगली सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ताओं को यह साबित करना होगा कि चुनाव आयोग की प्रक्रिया गलत है।

अब अगली सुनवाई 28 जुलाई को होगी, जिसमें इस मामले पर और विचार किया जाएगा।

इस बीच, बिहार में वोटर लिस्ट रिवीजन की प्रक्रिया जारी रहेगी, लेकिन चुनाव आयोग को सुनवाई का पूरा मौका देने और आधार, वोटर आईडी व राशन कार्ड को मान्यता देने के निर्देशों का पालन करना होगा।

चुनाव आयोग ने वादा किया है कि वह पारदर्शी तरीके से काम करेगा और किसी को अनुचित तरीके से वोटर लिस्ट से नहीं हटाया जाएगा।

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