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Shibu Soren Death: पिता की हत्या के बाद रखा राजनीति में कदम, शिबू सोरेन के ‘दिशोम गुरु’ बनने की कहानी

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Nisha Rai
Nisha Rai
निशा राय, पिछले 13 सालों से मीडिया के क्षेत्र में सक्रिय हैं। इन्होंने दैनिक भास्कर डिजिटल (M.P.), लाइव हिंदुस्तान डिजिटल (दिल्ली), गृहशोभा-सरिता-मनोहर कहानियां डिजिटल (दिल्ली), बंसल न्यूज (M.P.) जैसे संस्थानों में काम किया है। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय (भोपाल) से पढ़ाई कर चुकीं निशा की एंटरटेनमेंट और लाइफस्टाइल बीट पर अच्छी पकड़ है। इन्होंने सोशल मीडिया (ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम) पर भी काफी काम किया है। इनके पास ब्रांड प्रमोशन और टीम मैनेजमेंट का काफी अच्छा अनुभव है।

Shibu Soren Jharkhand: झारखंड की धरती ने अपने एक महान सपूत को खो दिया।

झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के संस्थापक, पूर्व मुख्यमंत्री और ‘दिशोम गुरु’ के नाम से मशहूर शिबू सोरेन का 81 वर्ष की आयु में निधन हो गया।

उन्होंने दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में 4 अगस्त 2025 को सुबह 8:56 बजे अंतिम सांस ली।

उनके निधन से झारखंड की राजनीति में एक युग का अंत हो गया।

झारखंड सरकार ने उनके सम्मान में सात दिन के राजकीय शोक की घोषणा की है।

आज मैं शून्य हो गया हूं- बेटे का भावुक पोस्ट

उनके बेटे और झारखंड के वर्तमान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने भावुक होकर कहा, “गुरुजी हम सभी को छोड़कर चले गए, आज मैं शून्य हो गया हूं।”

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पीएम ने दी श्रद्धाजंलि

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक्स पर पोस्ट पर लिखा कि ‘शिबू सोरेन जी एक जमीन से जुड़े नेता थे।

उन्होंने आदिवासी समुदायों, गरीबों और वंचितों के लिए काम किया।’

पीएम ने आगे लिखा कि ‘उनके निधन से मैं दुखी हूं। मेरी संवेदनाएं उनके परिवार और लोगों के साथ हैं।

राहुल गांधी ने व्यक्त कीं गहरी संवेदनाएं

शिबू सोरेन का संघर्षशील जीवन, पिता की हत्या से बदली जिंदगी

शिबू सोरेन का जन्म 11 जनवरी 1944 को तत्कालीन हजारीबाग (वर्तमान रामगढ़ जिले) के नेमरा गांव में हुआ था।

उनका बचपन बेहद साधारण और चुनौतियों से भरा रहा।

गांव के स्कूल में प्रारंभिक शिक्षा लेने वाले शिबू के जीवन में उस समय बड़ा बदलाव आया, जब महज 13 साल की उम्र में उनके पिता शोभराम सोरेन की हत्या सूदखोर महाजनों ने कर दी।

पढ़ाई छोड़कर उन्होंने महाजनों के खिलाफ संघर्ष का रास्ता चुना

यह वह दौर था, जब आदिवासी समाज शोषण और अन्याय का शिकार था।

शिबू ने इस अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने का फैसला किया, जो बाद में उनके जीवन का मिशन बन गया।

‘दिशोम गुरु’ बनने की कहानी

शिबू सोरेन का ‘दिशोम गुरु’ बनना किसी चमत्कार से कम नहीं था।

1970 के दशक में उन्होंने सूदखोर महाजनों के खिलाफ ‘धान कटनी आंदोलन’ शुरू किया।

इस आंदोलन ने उन्हें आदिवासी समाज का नायक बना दिया। लेकिन इस दौरान उन्हें कई बार जान का खतरा भी झेलना पड़ा।

एक बार महाजनों के गुंडों ने उन्हें घेर लिया। बारिश का मौसम था और बराकर नदी उफान पर थी।

शिबू ने अपनी बाइक के साथ नदी में छलांग लगा दी।

सभी को लगा कि उनका बचना असंभव है, लेकिन वह तैरकर नदी के दूसरे किनारे पहुंच गए।

इस घटना को आदिवासियों ने दैवीय चमत्कार माना और उन्हें ‘दिशोम गुरु’ यानी ‘देश का गुरु’ कहना शुरू किया

झारखंड आंदोलन और राजनीतिक सफर

शिबू सोरेन ने झारखंड को बिहार से अलग करने में अहम भूमिका निभाई।

उनके नेतृत्व में झारखंड मुक्ति मोर्चा ने आदिवासी हितों के लिए संघर्ष किया और 2000 में झारखंड को अलग राज्य का दर्जा मिला।

शिबू तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री बने, आठ बार लोकसभा सांसद और तीन बार राज्यसभा सांसद रहे।

वह केंद्रीय मंत्री भी रहे और अंतिम समय तक राज्यसभा के सदस्य थे।

उनकी राजनीति का आधार हमेशा आदिवासी अधिकार और सामाजिक न्याय रहा।

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स्वास्थ्य और अंतिम दिन

पिछले कुछ सालों से शिबू सोरेन कई स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे थे।

उन्हें किडनी की बीमारी थी और वह लंबे समय से डायलिसिस पर थे।

इसके अलावा, डायबिटीज और हार्ट की बायपास सर्जरी ने उनकी सेहत को और कमजोर कर दिया था।

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19 जून 2025 को उनकी तबीयत अचानक बिगड़ने के बाद उन्हें दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में भर्ती किया गया।

उन्हें ब्रेन स्ट्रोक हुआ, जिसके कारण उनके शरीर के बाईं ओर लकवा मार गया।

पिछले एक महीने से वह लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर थे।

न्यूरोलॉजी, कार्डियोलॉजी और नेफ्रोलॉजी के विशेषज्ञों की टीम ने उनकी देखभाल की, लेकिन वह जिंदगी की जंग हार गए।

परिवार और विरासत

शिबू सोरेन की शादी रूपी सोरेन से हुई थी। उनके चार बच्चे थे—दुर्गा सोरेन (दिवंगत), अंजनी सोरेन, हेमंत सोरेन और बसंत सोरेन।

हेमंत सोरेन वर्तमान में झारखंड के मुख्यमंत्री और JMM के प्रमुख नेता हैं। उनकी पत्नी कल्पना सोरेन भी राजनीति में सक्रिय हैं।

दुर्गा सोरेन की पत्नी सीता सोरेन और बसंत सोरेन भी राजनीति में हैं, जबकि अंजनी सामाजिक कार्यों से जुड़ी हैं।

शिबू सोरेन का परिवार आज भी झारखंड की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।

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शिबू सोरेन के जीवन पर एक नजर

  • जन्म: 11 जनवरी 1944, रामगढ़, झारखंड
  • 1957 में 13 साल की उम्र में पिता की हत्या के बाद पढ़ाई छोड़ी।
  • 1969 पहला विधानसभा चुनाव CPI के टिकट पर रामगढ़ से लड़ा, लेकिन हार गए।
  • 1970 के दशक में सूदखोरों के खिलाफ आंदोलन शुरू किया।
  • 1972 में अलग आदिवासियों के हक और अलग राज्य की मांग के लिए झारखंड मुक्ति मोर्चा बनाया।
  • 1980 में दुमका से लोकसभा चुनाव लड़े। पहली बार सांसद बने।
  • 1985 में जामा सीट से विधायक बने और 1989 में दुमका से फिर सांसद बने।
  • मार्च 2005 मे पहली बार CM बने। बहुमत साबित नहीं करने पर दस दिन में इस्तीफा दिया।
  • अगस्त 2008 को दूसरी बार झारखंड के सीएम बने । उपचुनाव हारने पर पांच महीने बाद इस्तीफा दिया।
  • दिसंबर 2009 में तीसरी बार झारखंड के सीएम बने। कार्यकाल 5 महीने का रहा।
  • 2014 लोकसभा चुनाव जीते।
  • 2020 से राज्यसभा सांसद थे।

शोक और अंतिम संस्कार

शिबू सोरेन के निधन की खबर से झारखंड में शोक की लहर दौड़ गई।

JMM कार्यकर्ता और समर्थक उनके सम्मान में सड़कों पर उतर आए। उनके पार्थिव शरीर को 4 अगस्त 2025 की शाम तक रांची लाया जाएगा।

अंतिम संस्कार की जानकारी जल्द साझा की जाएगी।

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एक युग का अंत

शिबू सोरेन सिर्फ एक नेता नहीं, बल्कि झारखंड की जनता के लिए प्रेरणा थे।

उनका जीवन संघर्ष, साहस और समर्पण की मिसाल है।

उन्होंने न सिर्फ झारखंड को एक नई पहचान दी, बल्कि आदिवासी समाज को उनके अधिकारों के लिए एक मजबूत आवाज भी दी।

उनके निधन से झारखंड ने अपना ‘दिशोम गुरु’ खो दिया, लेकिन उनकी विरासत हमेशा जीवित रहेगी।

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