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डिग्री नहीं दिखाएंगे! दिल्ली हाईकोर्ट ने पलटा CIC का फैसला, PM मोदी की डिग्री नहीं होगी सार्वजनिक

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Nisha Rai
Nisha Rai
निशा राय, पिछले 13 सालों से मीडिया के क्षेत्र में सक्रिय हैं। इन्होंने दैनिक भास्कर डिजिटल (M.P.), लाइव हिंदुस्तान डिजिटल (दिल्ली), गृहशोभा-सरिता-मनोहर कहानियां डिजिटल (दिल्ली), बंसल न्यूज (M.P.) जैसे संस्थानों में काम किया है। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय (भोपाल) से पढ़ाई कर चुकीं निशा की एंटरटेनमेंट और लाइफस्टाइल बीट पर अच्छी पकड़ है। इन्होंने सोशल मीडिया (ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम) पर भी काफी काम किया है। इनके पास ब्रांड प्रमोशन और टीम मैनेजमेंट का काफी अच्छा अनुभव है।

PM Modi degree controversy: दिल्ली हाईकोर्ट ने 25 अगस्त को एक बड़ा फैसला सुनाते हुए कहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की स्नातक (BA) की डिग्री से जुड़े रिकॉर्ड सार्वजनिक नहीं किए जाएंगे।

अदालत ने केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) के उस आदेश को पलट दिया है, जिसमें दिल्ली विश्वविद्यालय (DU) को यह जानकारी जारी करने के निर्देश दिए गए थे।

इस फैसले के बाद अब दिल्ली विश्वविद्यालय के पास प्रधानमंत्री की डिग्री का ब्यौरा सार्वजनिक करने की कोई बाध्यता नहीं रह गई है।

क्या था पूरा मामला?

यह मामला साल 2016 से चला आ रहा था, जब एक आरटीआई कार्यकर्ता नीरज कुमार ने दिल्ली विश्वविद्यालय के समक्ष एक आवेदन दायर किया था।

उन्होंने साल 1978 में बीए की परीक्षा पास करने वाले सभी छात्रों के नाम, रोल नंबर, अंक और परिणाम का विवरण मांगा था।

चूंकि माना जाता है कि प्रधानमंत्री मोदी ने भी उसी साल यह परीक्षा उत्तीर्ण की थी, इसलिए यह मांग विवादों में घिर गई।

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केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) ने इस मामले में आरटीआई कार्यकर्ता के पक्ष में फैसला देते हुए दिल्ली विश्वविद्यालय को यह जानकारी सार्वजनिक करने का आदेश दिया था।

आयोग का तर्क था कि विश्वविद्यालय एक सार्वजनिक संस्था है और डिग्री का ब्यौरा एक सार्वजनिक दस्तावेज माना जाता है, जिसे जारी किया जाना चाहिए।

हालांकि, दिल्ली विश्वविद्यालय इस आदेश से सहमत नहीं था और उसने इसे दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती दे दी।

विश्वविद्यालय और अदालत का पक्ष

दिल्ली विश्वविद्यालय की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत में दलील दी।

उनका मुख्य तर्क था कि छात्रों की व्यक्तिगत जानकारी एक “गोपनीय और विश्वासपात्र (फिड्यूशरी)” प्रकृति की होती है।

महज जिज्ञासा या कुतूहलवश इसे किसी अजनबी को आरटीआई के तहत नहीं दिया जा सकता।

उन्होंने यह भी कहा कि ‘निजता का अधिकार’, ‘सूचना पाने के अधिकार’ से ऊपर है।

विश्वविद्यालय ने यह भी स्पष्ट किया कि वह अदालत को ये रिकॉर्ड दिखाने को तैयार है, लेकिन इसे सार्वजनिक रूप से प्रकट नहीं कर सकता।

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इसके जवाब में, आरटीआई कार्यकर्ता की ओर से वकील संजय हेगड़े ने कहा कि परीक्षा परिणाम जारी करना विश्वविद्यालयों की एक सामान्य प्रक्रिया है, जो अक्सर नोटिस बोर्ड, वेबसाइट या अखबारों के माध्यम से की जाती है।

दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति सचिन दत्ता ने विश्वविद्यालय के तर्कों को स्वीकार करते हुए सीआईसी के आदेश को रद्द कर दिया।

अदालत ने माना कि इस तरह की व्यक्तिगत जानकारी को गोपनीय रखने का अधिकार है और इसे आरटीआई के दायरे में नहीं माना जा सकता।

केजरीवाल ने भी मांगा था ब्यौरा

यह पहला मौका नहीं था जब इस तरह का मामला अदालत में पहुंचा।

इससे पहले मार्च 2023 में, गुजरात हाईकोर्ट ने भी सीआईसी के एक ऐसे ही आदेश को रद्द कर दिया था, जिसमें पीएम मोदी की स्नातक और स्नातकोत्तर दोनों डिग्रियों का विवरण मांगा गया था।

उस मामले में आम आदमी पार्टी के नेता और दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर जुर्माना भी लगाया गया था, जिन्होंने यह जानकारी मांगी थी।

Arvind Kejriwal

इस फैसले के बाद अब यह मामला काफी हद तक विराम लगता है, जिसमें व्यक्तिगत गोपनीयता के अधिकार को सूचना के अधिकार पर प्राथमिकता दी गई है।

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