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एक्सीडेंट के बाद मदद की गुहार लगाता रहा घायल युवक, पुलिस करती रही लिखा-पढ़ी

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Nisha Rai
Nisha Rai
निशा राय, पिछले 13 सालों से मीडिया के क्षेत्र में सक्रिय हैं। इन्होंने दैनिक भास्कर डिजिटल (M.P.), लाइव हिंदुस्तान डिजिटल (दिल्ली), गृहशोभा-सरिता-मनोहर कहानियां डिजिटल (दिल्ली), बंसल न्यूज (M.P.) जैसे संस्थानों में काम किया है। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय (भोपाल) से पढ़ाई कर चुकीं निशा की एंटरटेनमेंट और लाइफस्टाइल बीट पर अच्छी पकड़ है। इन्होंने सोशल मीडिया (ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम) पर भी काफी काम किया है। इनके पास ब्रांड प्रमोशन और टीम मैनेजमेंट का काफी अच्छा अनुभव है।

Rajgarh Police Accident Case: मध्य प्रदेश के राजगढ़ जिले में सड़क दुर्घटना के बाद पुलिस की संवेदनहीनता ने एक युवक की जान को खतरे में डाल दिया।

घटना मंगलवार को कुरावर थाना क्षेत्र के तलेन स्टेट हाईवे पर हुई, जहां दो मोटरसाइकिलों की आमने-सामने टक्कर हुई।

इस हादसे में चार युवक घायल हुए, जिनमें से गोविंद मालवीय (25) और मनीष मालवीय (23) की हालत गंभीर हो गई।

घायल युवक जमीन पर तड़प रहे थे और एएसआई प्रसादीलाल से मदद की गुहार लगा रहे थे।

“मुझे हॉस्पिटल पहुंचा दो, नहीं तो मर जाऊंगा!”

वह बार-बार चिल्ला रहा था – “मुझे हॉस्पिटल पहुंचा दो, नहीं तो मर जाऊंगा!” लेकिन पुलिस कर्मी कागजी कार्रवाई में व्यस्त रहे और घायल की पुकार को अनसुना कर दिया।

करीब आधे घंटे तक कोई एंबुलेंस या मेडिकल सहायता नहीं पहुंची।

अंततः डायल-100 की गाड़ी आई, जिससे घायलों को अस्पताल ले जाया गया।

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राहवीर योजना: सिर्फ कागजों में दिखावा?

मध्य प्रदेश सरकार ने सड़क दुर्घटना में घायलों को तुरंत अस्पताल पहुंचाने के लिए “राहवीर योजना” शुरू की थी।

इस योजना का उद्देश्य है कि घायल व्यक्ति को “गोल्डन ऑवर” (पहले एक घंटे) में चिकित्सा सहायता मिले, ताकि उसकी जान बचाई जा सके।

इसके लिए सरकार 25,000 रुपए तक का प्रोत्साहन भी देती है। लेकिन राजगढ़ की इस घटना ने साबित कर दिया कि यह योजना सिर्फ कागजों तक ही सीमित है।

जबकि सरकार “गोल्डन ऑवर” की बात करती है, पुलिस ने घायलों को अस्पताल पहुंचाने में आधे घंटे की देरी की। इस देरी के कारण घायल युवक की हालत और बिगड़ गई।

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पुलिस का बचाव: “एंबुलेंस लेट आई”

जब यह मामला वायरल हुआ, तो पुलिस ने अपनी लापरवाही को छुपाने के लिए बहानेबाजी शुरू कर दी।

थाना प्रभारी संगीता शर्मा ने कहा कि “एंबुलेंस समय पर नहीं पहुंची”, जबकि वीडियो में साफ दिख रहा था कि पुलिस ने घायल की मदद के लिए कोई तत्काल कदम नहीं उठाया।

एसडीओपी उपेंद्र सिंह भाटी ने दावा किया कि घायल के पैर में गंभीर चोट थी और उसे सामान्य गाड़ी में ले जाना संभव नहीं था।

लेकिन सवाल यह है कि क्या पुलिस के पास कोई आपातकालीन प्रोटोकॉल नहीं था? क्या वे स्थानीय लोगों की मदद से घायल को अस्पताल नहीं पहुंचा सकते थे?

जनता के सवाल और सरकार की जवाबदेही

इस घटना ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं:

  1. क्या राहवीर योजना सिर्फ दिखावा है?

  2. क्या पुलिस को कागजी कार्रवाई इंसान की जान से ज्यादा महत्वपूर्ण लगती है?

  3. क्या पुलिसकर्मियों को संवेदनशीलता की ट्रेनिंग दी जाती है?

  4. क्या इस मामले में लापरवाह पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई होगी?

सरकार योजनाएं बनाती है, लेकिन जमीन पर उनका क्रियान्वयन नहीं होता।

पुलिस को “फर्स्ट रेस्पॉन्डर” की भूमिका निभानी चाहिए, न कि सिर्फ पंचनामा बनाने की।

इंसानियत जरूरी या कागजी कार्रवाई?

यह घटना हमारे सिस्टम की कमियों और संवेदनहीनता को उजागर करती है।

अगर पुलिस ने तुरंत कार्रवाई की होती, तो शायद घायल युवक की हालत इतनी न बिगड़ती।

सरकार को राहवीर योजना को सख्ती से लागू करना चाहिए और पुलिसकर्मियों को संवेदनशीलता प्रशिक्षण देना चाहिए।

“कागज नहीं, जिंदगी बचाना पहली प्राथमिकता होनी चाहिए!”

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