भोपाल, 22 अगस्त। सिनेमा की विभिन्न विधाओं में लिखने वाले लेखक देश को देखने और समझने के बाद ही अलग-अलग विषयों का समावेश कहानियों में करते हैं। हमारे देश में कहानियों और उनके विषयों की कोई कमी नहीं है। समाज में अलग-अलग दौर में फिल्मों की कहानियां कैसे लिखी गई हैं, इसे पिछले अनेक दशकों की फिल्मों को देखकर समझा जा सकता है।
यह विचार आज माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के ‘अभ्युदय’ के अंतिम दिन ‘रुस्तम’ तथा ‘इकबाल’ जैसी चर्चित फिल्मों के पटकथा लेखक श्री विपुल के. रावल ने व्यक्त की। सत्रारंभ के अंतिम दिन वरिष्ठ पत्रकार श्री अनंत विजय, श्री बृजेश कुमार, श्री बालकृष्ण एवं सुश्री अदिति राजपूत ने विभिन्न सत्रों में विद्यार्थियों को सम्बोधित किया।
पटकथा लेखक श्री रावल ने भारतीय फिल्म उद्योग और वैश्विक सिनेमा के विकास की यात्रा पर चर्चा करते हुए फिल्म लेखन के क्षेत्र में आ रहे महत्वपूर्ण बदलावों को रियल लाइफ से जुड़े विषयों की कहानियों के साथ प्रस्तुत करते हुए लेखन एवं तकनीक के अन्तरसम्बन्धों पर चर्चा की। सत्र में उपस्थित वरिष्ठ पत्रकार अनंत विजय ने कहा कि फिल्मों की कहानियां हमारी भावनाएं ही होती हैं।

अगर हम गौर से देखेंगे तो पाएंगे कि सिनेमा की अधिकतर कहानियों में रामकथा की प्रेरणा होती है, क्योंकि रामकथा हमारे मन में रची-बसी है। उन्होंने कहा कि विभिन्न जन माध्यमों में आज फिल्म समीक्षा किसी फिल्म की व्याख्या बनकर रह गई है, उसमें विश्लेषण एवं विवेचना का अभाव स्पष्ट झलक रहा है। विद्यार्थियों को इसे समझना बहुत जरूरी है। उन्होंने कहा कि फिल्म रिव्यू राइटिंग के लिए कहानी में डीप डाइव करना जरूरी है। उन्होंने बताया कि लोक की विराट जानकारी अगर हमें होगी तो बेहतरीन समीक्षाएं लिख सकेंगे।
एक अन्य सत्र में नेटवर्क 18 के वरिष्ठ संपादक डॉ. बृजेश कुमार सिंह ने कहा कि तीन दशक पहले प्रिंट रेडियो का दौर था। उस समय टीवी पर महज कुछ समाचार बुलेटिन आते थे। उन्होंने कहा कि वर्ष 2000 के बाद से जिस तरह डिजिटल का दौर शुरु हुआ उसमें प्रिंट मीडिया ने भी खुद को री-इन्वेंट किया और कन्वर्जेंस के हिसाब से खुद को अनुकूल किया।
श्री सिंह ने कहा कि आज डिजिटल मीडिया तेजी से बढ़ रहा है और इसने दूसरे माध्यमों को कड़ी प्रतिस्पर्धा दी है। अपने संपादन में उन्होंने कहा कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से घबराने की जरूरत नहीं है। डिजिटल का बाजार बहुत बढ़़ेगा इसके साथ ओरिजिनल कंटेंट की मांग बढ़ेगी, अतःविद्यार्थी अपनी स्किल्स को बेहतर करने पर ध्यान दें।
इस सत्र के मुख्य वक्ता वरिष्ठ पत्रकार श्री बालकृष्ण ने मीडिया की विश्वसनीयता और ब्रॉडकास्टिंग पर अपने वक्तव्य में बताया कि किस तरह गलत सूचनाओं ने मीडिया में फैक्ट चैकिंग की मांग बढ़ाई है। उन्होंने कहा कि किस तरह डिजिटल फ्रॉड देश भर में बढ़ रहे हैं। अपने व्याख्यान में उन्होंने मीडिया में विजुअल इन्वेस्टिगेशन और फैक्ट चेकिंग पर बात करते हुए युवा तकनीक के साथ जुड़े रहें।

इस अवसर पर विश्वविद्यालय की पूर्व छात्रा एवं एनडीटीवी की एंकर अदिति राजपूत ने कहा कि मीडिया आज एक शक्तिशाली उपकरण है इसमें समाज को परिवर्तन करने की शक्ति है पर निश्चित तौर पर इसके कुछ उत्तरदायित्व भी हैं। उन्होंने विद्यार्थियों से अध्ययन पर जोर देने और नए कौशल सीखने की बात कही।
सेंसर टेक्नालॉजी पर अपनी बात रखते हुए ड्रोन टेक्नालाजी विशेषज्ञ चिराग जैन ने कहा कि मीडिया क्षेत्र से जुड़ी तकनीक का बेहद विकास हुआ है। पिछले कुछ दशकों में यह यात्रा प्रिंट मीडिया से होती हुए बेहरीन कैमरों और ड्रोन तकनीक तक विस्तृत हो गई है। ड्रोन तकनीक का समाज में उपयोग बढ़ रहा है। इस क्षेत्र में काफी संभावनाएं हैं।
उन्होंने अपने स्टॉर्टअप से जुड़े अनुभवों को भी साझा किया। इस सत्र में उपस्थित अधिवक्ता शिखा छिब्बर ने भारतीय न्याय संहिता के नवीन पहलुओं पर अपना संबोधन दिया। उन्होंने कहा कि नए कानूनों का उद्देश्य हर आम आदमी को न्याय देना है। उन्होंने बताया कि मीडिया के विद्यार्थियों के लिए नए कानूनों और उनके प्रावधानों का जानना बहुत जरूरी है।
विश्वविद्यालय की पूर्व छात्रा और वर्तमान में कालिंदी कॉलेज, नई दिल्ली की एसोशिएट प्रोफेसर डॉ. निधि अरोड़ा ने विश्वविद्यालय से जुड़े अपने अनुभव साझा किए।उन्होंने कहा कि सफलता हमेशा आपका साथ देगी जब आप पूरी सामर्थ्य से उसे करेंगे। सिनेमा अध्ययन विभाग की पूर्व छात्रा और फिल्मकार सरिता चौरसिया ने फिल्म की दुनिया में कॅरियर कैसे शुरू करना और विश्वविद्यालय से जुड़े अपने अनुभवों पर अपने विचार रखे।

समापन सत्र में मुख्य अतिथि मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग के पूर्व अध्यक्ष श्री अशोक पांडे ने कहा कि अधिकार एवं कर्तव्य एक साथ होते हैं, सत्य को समाज के सामने बिना किसी रंग के रखना पत्रकारों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। समाज के धर्म का पालन करना पत्रकारों का उत्तरदायित्व है इस अवसर पर कुलगुरु श्री विजय मनोहर तिवारी ने कहा कि हमारे जीवन में कदम कदम पर हमें चौंकाता है।
जीवन चमत्कृत करने वाली कई घटनाओं से भरा हुआ होता है। उन्होंने कहा कि सत्रारंभ में आए विशेषज्ञों के दिए गुरु मंत्र विद्यार्थियों के लिए जीवन भर काम आने वाले हैं। उन्होंने आह्वान किया कि आगामी 20 वर्षों में देश स्वाधीनता के 100 वर्ष पूरे करेगा और इस दौरान विकसित भारत का स्वप्न युवा विद्यार्थियों के योगदान से ही पूरा हो सकता है।
सत्रारंभ के तीसरे दिन सिनेमा अध्ययन विभाग के सत्र के दौरान वर्ष 2025 में फिल्म प्रोडक्शन के स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम में प्रथम स्थान प्राप्त करने वाले विद्यार्थी उत्सव ठाकुर को स्व. श्री अनिल चौबे स्मृति पदक एवं 21000 रुपये की राशि प्रदान की गई। इस अवसर पर श्रीमती आराधना चौबे उपस्थित थीं।
विभिन्न सत्रों का संचालन डॉ. गजेन्द्र अवास्या, डॉ. सुनीता द्विवेदी, श्री राहुल खडि़या द्वारा किया गया। इस दौरान विभागाध्यक्ष प्रो. पवित्र श्रीवास्तव, डॉ. मोनिका वर्मा, प्रो. मनीष माहेश्वरी एवं समस्त विभागाध्यक्ष, शिक्षक एवं अधिकारी उपस्थित थे। अंत में आभार विश्वविद्यालय की कुलसचिव प्रोफेसर पी. शशिकला ने किया।