Justice Varma impeachment: 12 अगस्त को स्पीकर ओम बिरला ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ लोकसभा में महाभियोग प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है।
स्पीकर ओम बिरला ने कहा कि जस्टिस वर्मा पर लगे भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों के मद्देनजर यह कदम उठाया गया है।
इसके लिए एक 3 सदस्यीय समिति भी गठित की गई है, जो आरोपों की जांच करेगी।
यह प्रस्ताव 146 सांसदों के हस्ताक्षर के साथ पेश किया गया था, जिसमें जस्टिस वर्मा को पद से हटाने की मांग की गई है।
संविधान के अनुच्छेद 124 का हवाला
स्पीकर बिरला ने कहा कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 124 के तहत किसी न्यायाधीश को पद से हटाने की प्रक्रिया शुरू की जा सकती है।
उन्होंने जोर देकर कहा कि न्यायपालिका की साख बनाए रखने के लिए जरूरी है कि उसके सदस्य बेदाग चरित्र के हों।
जस्टिस वर्मा के मामले में आरोप भ्रष्टाचार से जुड़े हैं, इसलिए तुरंत कार्रवाई की जरूरत है।
#WATCH | Lok Sabha Speaker Om Birla accepts motion signed by 146 MPs for impeachment of Justice Yashwant Verma. Speaker Om Birla announces a 3-member panel to probe allegations against High Court judge Justice Yashwant Varma.
(Source: Sansad TV) pic.twitter.com/bGksFq2Kkq
— ANI (@ANI) August 12, 2025
क्या कहा गया संसद में?
स्पीकर ने सदन को बताया कि इस मामले में सभी नियमों का पालन किया गया है और सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुसार ही कार्यवाही की गई है।
उन्होंने कहा, “न्यायपालिका में जनता का भरोसा बनाए रखने के लिए पारदर्शिता जरूरी है।”
अब समिति की रिपोर्ट का इंतजार है, जिसके बाद ही कोई अंतिम फैसला लिया जाएगा।
यह मामला एक बार फिर न्यायपालिका में जवाबदेही और पारदर्शिता की मांग को लेकर चर्चा में है। अगर जस्टिस वर्मा के खिलाफ आरोप साबित होते हैं, तो यह देश के इतिहास में एक बड़ा मामला बन सकता है।
जांच समिति में कौन?
मामले की जांच के लिए स्पीकर ने एक 3 सदस्यीय कमेटी बनाई है।
इसमें सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अरविंद कुमार, मद्रास हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस मनिंदर मोहन श्रीवास्तव और कर्नाटक हाईकोर्ट के वरिष्ठ वकील बीवी आचार्य शामिल हैं।
यह कमेटी जस्टिस वर्मा पर लगे आरोपों की जांच करेगी। समिति के रिपोर्ट देने के बाद ही आगे की कार्रवाई तय होगी।
#WATCH | Lok Sabha Speaker Om Birla announces a 3-member panel to probe allegations against High Court judge Justice Yashwant Varma.
He says, “The members of the Committee include Justice Arvind Kumar, Supreme Court Judge, Justice Maninder Mohan Srivastava, Chief Justice… pic.twitter.com/hKTt4PiZFt
— ANI (@ANI) August 12, 2025
क्या है पूरा मामला?
जज के घर में आग और जले नोटों का मिलना
14 मार्च 2025 की रात, इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज जस्टिस यशवंत वर्मा के लुटियंस दिल्ली स्थित सरकारी आवास में आग लग गई।
जब फायर ब्रिगेड ने आग बुझाई, तो उन्हें स्टोर रूम में ₹500 के जले हुए नोटों के बंडल मिले।
21 मार्च को कुछ रिपोर्ट्स में दावा किया गया था कि जस्टिस वर्मा के घर से 15 करोड़ कैश मिला था। काफी नोट जल गए थे।
घटना के कई वीडियो भी सामने आए। इसमें जस्टिस के घर के स्टोर रूम से 500-500 रुपए के जले नोटों के बंडलों से भरे बोरे दिखे।
जस्टिस वर्मा उस समय दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस थे। बाद में उन्हें इलाहाबाद हाई कोर्ट ट्रांसफर कर दिया गया था।
मीडिया में खबर आई कि जज के घर से करोड़ों रुपये की नकदी बरामद हुई, हालांकि जस्टिस वर्मा ने इसे “साजिश” बताया।

जांच और कमेटी की रिपोर्ट
- इस घटना के बाद सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश ने एक 3-सदस्यीय इन-हाउस कमेटी बनाई, जिसने जांच में जस्टिस वर्मा को दोषी पाया।
- 64 पेज की रिपोर्ट में कहा गया कि जज और उनके परिवार का स्टोर रूम पर नियंत्रण था, जहां से जले नोट मिले।
- इसके बाद CJI संजीव खन्ना ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और PM मोदी को पत्र लिखकर उन्हें पद से हटाने की सिफारिश की।
- जस्टिस वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर इस जांच को अवैध बताया और कार्रवाई रोकने की मांग की।
- लेकिन SC ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि प्रक्रिया सही थी और जस्टिस वर्मा ने समय पर इसकी चुनौती नहीं दी।

महाभियोग प्रक्रिया कैसे काम करती है?
- किसी हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस को हटाने के लिए संसद के दोनों सदनों में से किसी में भी महाभियोग प्रस्ताव लाया जा सकता है।
- प्रस्ताव लाने के लिए राज्यसभा में कम से कम 50 सदस्यों को इस पर हस्ताक्षर करने होंगे और लोकसभा में 100 सदस्यों को इसका समर्थन करना होता है।
- जब प्रस्ताव दो तिहाई मतों से पारित हो जाता है तो लोकसभा अध्यक्ष या राज्यसभा के सभापति CJI से एक जांच समिति के गठन का अनुरोध करते हैं।
- जांच समिति में तीन सदस्य होते हैं- सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस और एक हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस और सरकार की तरफ से नामित कोई न्यायविद कार्यवाही शुरू करते हैं।

जस्टिस वर्मा का पक्ष
जस्टिस वर्मा ने कहा कि उनके घर से कोई नकदी नहीं मिली और उन्हें साजिश के तहत फंसाया गया है।
उनका तर्क है कि जांच प्रक्रिया पक्षपातपूर्ण थी।

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