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पतंजलि vs डाबर: दिल्ली हाईकोर्ट ने पतंजलि च्यवनप्राश के विज्ञापन पर लगाई रोक, जानें पूरा विवाद

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Nisha Rai
Nisha Rai
निशा राय, पिछले 13 सालों से मीडिया के क्षेत्र में सक्रिय हैं। इन्होंने दैनिक भास्कर डिजिटल (M.P.), लाइव हिंदुस्तान डिजिटल (दिल्ली), गृहशोभा-सरिता-मनोहर कहानियां डिजिटल (दिल्ली), बंसल न्यूज (M.P.) जैसे संस्थानों में काम किया है। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय (भोपाल) से पढ़ाई कर चुकीं निशा की एंटरटेनमेंट और लाइफस्टाइल बीट पर अच्छी पकड़ है। इन्होंने सोशल मीडिया (ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम) पर भी काफी काम किया है। इनके पास ब्रांड प्रमोशन और टीम मैनेजमेंट का काफी अच्छा अनुभव है।

Patanjali Chyawanprash advertisement: दिल्ली हाईकोर्ट ने गुरुवार को पतंजलि आयुर्वेद को डाबर के च्यवनप्राश के खिलाफ कोई भी नकारात्मक या भ्रामक विज्ञापन प्रसारित करने से रोक दिया है।

यह आदेश जस्टिस मिनी पुष्करणा की बेंच ने डाबर इंडिया लिमिटेड की याचिका पर सुनवाई के बाद दिया।

डाबर ने आरोप लगाया कि पतंजलि के विज्ञापनों में उनके उत्पाद को “सामान्य” और “आयुर्वेदिक परंपरा से दूर” बताकर गलत तरीके से प्रस्तुत किया जा रहा है, जिससे उनकी ब्रांड छवि को नुकसान पहुंच रहा है।

डाबर का आरोप: “पतंजलि ग्राहकों को गुमराह कर रहा”

डाबर की ओर से वरिष्ठ वकील संदीप सेठी ने कोर्ट में तर्क दिया कि पतंजलि के विज्ञापन में स्वामी रामदेव यह कहते नजर आते हैं कि

“जिन्हें आयुर्वेद और वेदों का ज्ञान नहीं, वे पारंपरिक च्यवनप्राश कैसे बना सकते हैं?”

डाबर का कहना है कि यह बयान सीधे उनके उत्पाद को निशाना बना रहा है, क्योंकि च्यवनप्राश बाजार में उनकी 60% से अधिक हिस्सेदारी है।

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डाबर ने यह भी कहा कि उनका च्यवनप्राश 40 से अधिक जड़ी-बूटियों से बना है और यह ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट के तहत पंजीकृत आयुर्वेदिक दवा है।

ऐसे में पतंजलि का दावा कि अन्य ब्रांड्स का च्यवनप्राश “सामान्य” है, भ्रामक और अनुचित है।

पतंजलि का पक्ष और कोर्ट का आदेश

पतंजलि की ओर से वरिष्ठ वकील राजीव नायर और जयंत मेहता ने अपना पक्ष रखा।

हालांकि, कोर्ट ने फिलहाल पतंजलि को डाबर के उत्पाद के खिलाफ कोई भी नकारात्मक विज्ञापन जारी करने से रोक दिया है।

अगली सुनवाई 14 जुलाई को होगी।

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पतंजलि का विवादों का इतिहास

यह पहली बार नहीं है जब पतंजलि के विज्ञापन विवादों में घिरे हैं। पिछले कुछ वर्षों में कंपनी कई बार भ्रामक विज्ञापनों के लिए कोर्ट के निशाने पर आ चुकी है:

  • 2022 में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर आरोप लगाया था कि पतंजलि कोविड और अन्य बीमारियों के इलाज के झूठे दावे कर रही है।

  • 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने पतंजलि को भ्रामक विज्ञापनों पर रोक लगाने का आदेश दिया, लेकिन कंपनी ने इसे नजरअंदाज किया।

  • “शरबत जिहाद” विवाद में भी पतंजलि के संस्थापक बाबा रामदेव को दिल्ली हाईकोर्ट से फटकार सुननी पड़ी थी।

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बहरहाल, दिल्ली हाईकोर्ट का यह आदेश उपभोक्ताओं को भ्रामक विज्ञापनों से बचाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

डाबर और पतंजलि के बीच यह कानूनी लड़ाई आयुर्वेदिक उत्पादों के बाजार में प्रतिस्पर्धा और विज्ञापन नैतिकता पर सवाल खड़े करती है।

अगली सुनवाई में कोर्ट का फैसला इस मामले में अहम भूमिका निभाएगा।

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