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कृष्ण-द्रोपदी से राजा बलि-मां लक्ष्मी तक, जानिए रक्षाबंधन से जुड़ी 3 पौराणिक कथाएं

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Nisha Rai
Nisha Rai
निशा राय, पिछले 13 सालों से मीडिया के क्षेत्र में सक्रिय हैं। इन्होंने दैनिक भास्कर डिजिटल (M.P.), लाइव हिंदुस्तान डिजिटल (दिल्ली), गृहशोभा-सरिता-मनोहर कहानियां डिजिटल (दिल्ली), बंसल न्यूज (M.P.) जैसे संस्थानों में काम किया है। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय (भोपाल) से पढ़ाई कर चुकीं निशा की एंटरटेनमेंट और लाइफस्टाइल बीट पर अच्छी पकड़ है। इन्होंने सोशल मीडिया (ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम) पर भी काफी काम किया है। इनके पास ब्रांड प्रमोशन और टीम मैनेजमेंट का काफी अच्छा अनुभव है।

Raksha Bandhan Katha: रक्षाबंधन एक प्राचीन हिंदू त्योहार है, जो मुख्य रूप से भाई-बहन के बीच प्यार और स्नेह के बंधन का प्रतीक है।

यह त्योहार श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है, जो आमतौर पर अगस्त के महीने में पड़ता है। इस साल ये त्योहार 9 अगस्त को मनाया जा रहा है

इस दिन बहनें अपने भाइयों की कलाई पर राखी बांधती हैं, जो एक रंगीन और पवित्र धागा होता है, और भाई अपनी बहनों की रक्षा का वचन देते हैं।

लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि रक्षाबंधन मानती क्यों है? इसकी शुरुआत कैसे हुई थी? आखिर किसने किस सबसे पहले राखी बांधी थी?

अगर आप भी यह सब जानना चाहते हैं तो आज हम आपको बताएंगे रक्षाबंधन से जुड़ी तीन पौराणिक कथाओं के बारे में…

जिनमें से मुख्य हैं इंद्र और इंद्राणी, लक्ष्मी और राजा बलि और द्रौपदी-कृष्ण की कहानियां।

इंद्र और इंद्राणी की कहानी:

प्राचीन काल में, जब असुर वृत्रासुर ने देवताओं पर आक्रमण किया, तो देवराज इंद्र युद्ध में पराजित होने लगे। उनकी पत्नी इंद्राणी ने देवगुरु बृहस्पति की सलाह पर इंद्र की कलाई पर एक पवित्र धागा (रक्षासूत्र) बांधा।

इस रक्षा सूत्र ने इंद्र को शक्ति दी, और उन्होंने वृत्रासुर को पराजित किया।

लक्ष्मी और राजा बलि की कहानी:

दूसरी कथा राजा बलि और माता लक्ष्मी से जुड़ी हुई है। कहते हैं कि मां लक्ष्मी ने ही राजा बली को सबसे पहले राखी बांधी थी।

दरअसल जब भगवान विष्णु वामन अवतार के बाद राजा बलि से प्रसन्न होकर उनके साथ पाताल लोक में निवास करने चले गए तो माता लक्ष्मी उनके वियोग में दुखी हो गई।

 

इसके बाद माता लक्ष्मी भेष बदलकर राजा बलि के पास पहुंची और अपने पति से वियोग की सारी कथा बताई।

राजा बलि ने उनकी मदद करने की बात कही। इसके बाद जब उन्होंने कहा कि वह विष्णु प्रिया लक्ष्मी है तो राजा बलि को सारी सच्चाई पता चली।

इसके बाद माता लक्ष्मी ने राजा बलि को राखी बांधी और उन्हें अपना भाई बनाया।

बदले में, बलि ने एक भाई का फर्ज निभाते हुए भगवान विष्णु को पाताल लोक से मुक्त कर दिया।

तभी से रक्षा सूत्र बांधने की परंपरा चली आ रही है।

द्रौपदी और कृष्ण

महाभारत में एक कथा है कि जब भगवान कृष्ण ने अपने सुदर्शन चक्र से शिशुपाल का वध किया, तो उनकी उँगली कट गई और उसे खून निकल आया।

ऐसे में हस्तिनापुर की महारानी द्रौपदी ने बिना सोचे अपनी साड़ी का एक टुकड़ा फाड़कर कृष्ण की उंगली में पट्टी बांध दी।

उसी क्षण कृष्ण ने द्रोपदी को वचन दिया था कि जहाँ-जहाँ, जब-जब तुम्हें जरूरत होगी, मैं वहाँ नंगे पैर तुम्हारी सहायता के लिए आ जाऊंगा।

कृष्ण ने इस वचन को बखूबी निभाया भी। जब हस्तिनापुर की राज्यसभा में द्रोपदी का चीर हरण हो रहा था और उनके पांचो पति चुप बैठे थे।

तब कृष्ण ने ही अपनी शक्ति से द्रौपदी की रक्षा की थी और उनका मान रखा।

इस कथा की वजह से ही रक्षाबंधन का असली मतलब ये माना जाता है कि भाई हर मुश्किल घड़ी में बहन की रक्षा करेगा।

धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व

सनातन धर्म में, रक्षाबंधन का धार्मिक महत्व है। यह त्योहार यजुर्वेदी ब्राह्मणों के लिए उपाकर्म का दिन है, जिसमें वे जनेऊ बदलते हैं और वेदों का अध्ययन करते हैं।

इसके अलावा, अमरनाथ यात्रा भी इस दिन पूरी होती है।

दक्षिण भारत में, इसे नारियल पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है, विशेष रूप से मछुआरों द्वारा।

रक्षाबंधन एक ऐसा त्योहार है, जो प्राचीन पौराणिक कथाओं और आधुनिक परंपराओं को जोड़ता है।

यह भाई-बहन के बीच प्यार और संरक्षण का प्रतीक है, और समय के साथ इसके दायरे में मित्रों और अन्य रिश्तों को भी शामिल किया गया है।

यह त्योहार न केवल पारिवारिक बंधनों को मजबूत करता है, बल्कि सामाजिक एकता को भी बढ़ावा देता है।

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