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वट सावित्री व्रत: पति की लंबी उम्र के लिए बरगद पर ही क्यों धागा बांधती हैं सुहागिने, जानें प्राचीन कथा

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Nisha Rai
Nisha Rai
निशा राय, पिछले 13 सालों से मीडिया के क्षेत्र में सक्रिय हैं। इन्होंने दैनिक भास्कर डिजिटल (M.P.), लाइव हिंदुस्तान डिजिटल (दिल्ली), गृहशोभा-सरिता-मनोहर कहानियां डिजिटल (दिल्ली), बंसल न्यूज (M.P.) जैसे संस्थानों में काम किया है। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय (भोपाल) से पढ़ाई कर चुकीं निशा की एंटरटेनमेंट और लाइफस्टाइल बीट पर अच्छी पकड़ है। इन्होंने सोशल मीडिया (ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम) पर भी काफी काम किया है। इनके पास ब्रांड प्रमोशन और टीम मैनेजमेंट का काफी अच्छा अनुभव है।

Vat Savitri Vrat Katha: 26 मई को पूरे देश में वट सावित्री व्रत धूमधाम से मनाया जा रहा है।

वट सावित्री व्रत हिंदू धर्म में विवाहित महिलाओं के लिए एक महत्वपूर्ण व्रत है।

यह व्रत पति की लंबी आयु और सुखी दांपत्य जीवन की कामना से किया जाता है।

इस दिन सुहागिन महिलाएं पति की लंबी उम्र की खातिर दिन भर निर्जल उपवास रखती है।

इस दिन बरगद के पेड़ की पूजा का विशेष महत्व है। जिसपर महिलाएं धागा बांधते हुए परिक्रमा करती हैं।

मगर क्या आपको इसका कारण पता है।

अगर नहीं तो चलिए जानते हैं इसकी वजह साथ ही जानेंगे इस व्रत की प्राचीन कथा…

वट वृक्ष पर हीं क्यों धागा बांधती हैं सुहागिने

  • वट यानी बरगद का वृक्ष सनातन संस्कृति में अत्यंत पवित्र माना गया है।
  • बरगद के पेड़ को त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) का प्रतीक माना जाता है।
  • इसकी जड़ों में ब्रह्मा, तने में विष्णु और शाखाओं में शिव का वास होता है। त्रिदेवों का वास होने के कारण इसे देववृक्ष भी कहा जाता है।
  • धार्मिक कथाओं के अनुसार इसी वृक्ष के नीचे सत्यवान ने अपने प्राण त्यागे थे और सावित्री ने इसी की छांव में बैठकर अपने तपबल से मृत पति सत्यवान को पुनर्जीवित किया था। उसी स्मृति में वट वृक्ष की पूजा की जाती है।
  • इस वृक्ष की शाखाएं जो नीचे की ओर झुकती हैं, उन्हें देवी सावित्री का रूप माना जाता है।
  • इसके अलावा ज्येष्ठ माह की चिलचिलाती गर्मी में महिलाओं की पूजा के लिए भी इसी वृक्ष को चुना गया है क्योंकि यह वृक्ष सबसे अधिक छाया देता है।

वट सावित्री व्रत की पौराणिक कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, सावित्री नामक एक पतिव्रता स्त्री ने अपने पति सत्यवान को यमराज के चंगुल से छुड़ाया था।

वट सावित्री व्रत के अवसर पर सुनाई जाने वाली सावित्री और सत्यवान की कहानी महिलाओं के दृढ़ संकल्प, प्रेम और साहस का प्रतीक है।

इस प्रेरणादायक कहानी में सावित्री अपने तप, भक्ति और बुद्धिमत्ता के माध्यम से यमराज से अपने पति का जीवन पुनः प्राप्त कर लेती है।

राजकुमारी सावित्री का जन्म

एक समय मद देश में अश्वपति नामक एक धर्मात्मा राजा रहते थे।

उनकी कोई संतान नहीं थी। संतान प्राप्ति की इच्छा से उन्होंने देवी सावित्री की कठिन तपस्या की।

देवी ने प्रसन्न होकर उन्हें एक कन्या का वरदान दिया।

कुछ समय बाद राजा के घर एक सुंदर और गुणवान कन्या का जन्म हुआ, जिसका नाम सावित्री रखा गया।

सत्यवान से विवाह

जब सावित्री विवाह योग्य हुई, तो राजा ने उसे अपने लिए वर चुनने को कहा।

सावित्री ने वन में भटक रहे राजा द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान को अपना पति चुना।

सत्यवान धर्मात्मा और गुणवान थे, लेकिन उनके पास कोई राज्य नहीं था।

जब महर्षि नारद ने सत्यवान की कुंडली देखी, तो उन्होंने बताया कि सत्यवान अल्पायु हैं और विवाह के एक साल बाद ही उनकी मृत्यु हो जाएगी।

राजा अश्वपति ने सावित्री से दूसरा वर चुनने को कहा, लेकिन सावित्री ने इनकार कर दिया।

उसने कहा, “मैंने एक बार सत्यवान को अपना पति चुन लिया है, अब मैं किसी और के बारे में नहीं सोच सकती।”

सत्यवान की मृत्यु

सावित्री का विवाह सत्यवान से हुआ और वह अपने सास-ससुर के साथ वन में रहने लगी।

वह अपने कर्तव्यों का पालन पूरी निष्ठा से करती थी।

जब सत्यवान की मृत्यु का दिन नजदीक आया, तो सावित्री ने व्रत रखा और पूजा की।

एक दिन सत्यवान लकड़ी काटने वन गए। अचानक उनके सिर में तेज दर्द हुआ और वह सावित्री की गोद में सिर रखकर लेट गए।

कुछ ही देर में यमराज प्रकट हुए और सत्यवान के प्राण लेकर चल दिए। सावित्री भी उनके पीछे चल पड़ी।

यमराज से वरदान

यमराज ने सावित्री को वापस जाने को कहा, लेकिन वह नहीं मानी।

उसने कहा, “जहां मेरा पति जाएगा, वहां मैं भी जाऊंगी। पत्नी का धर्म पति का साथ देना है।”

सावित्री की निष्ठा देखकर यमराज प्रसन्न हुए और उसे वरदान मांगने को कहा।

सावित्री ने पहले अपने सास-ससुर की आंखों की ज्योति मांगी।

फिर उसने सौ पुत्रों की मां बनने का वरदान मांगा। यमराज ने तथास्तु कह दिया।

तब सावित्री ने कहा, “महाराज, बिना पति के मैं मां कैसे बन सकती हूं? आपने मुझे सौ पुत्रों का वरदान दिया है, इसलिए मेरे पति को जीवनदान दीजिए।”

सावित्री की बुद्धिमत्ता और पति भक्ति से प्रसन्न होकर यमराज ने सत्यवान के प्राण वापस कर दिए।

तभी से यह व्रत मनाया जाता है।

वट सावित्री व्रत का महत्व

इस कथा के अनुसार, जो स्त्रियां इस व्रत को पूरी श्रद्धा से करती हैं, उनके पति दीर्घायु होते हैं और उनका वैवाहिक जीवन सुखमय रहता है।

वट वृक्ष (बरगद का पेड़) को दीर्घायु और स्थिरता का प्रतीक माना जाता है, इसलिए इस दिन महिलाएं वट वृक्ष की पूजा करती हैं और धागा बांधकर अपने पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं।

इस व्रत को करने से स्त्रियों को पति का साथ लंबे समय तक मिलता है और परिवार में सुख-समृद्धि आती है। सावित्री की तरह पतिव्रता स्त्री अपने पति के लिए कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी संघर्ष कर सकती है।

व्रत के लाभ

  • पति की दीर्घायु और स्वास्थ्य में सुधार।
  • वैवाहिक जीवन में प्रेम और स्थिरता बनी रहती है।
  • संतान प्राप्ति और पारिवारिक सुख की प्राप्ति।
  • देवी सावित्री का आशीर्वाद मिलता है।

पति-पत्नी मिलकर करें ये उपाय

  • दोनों मिलकर वट वृक्ष की 11 परिक्रमा करें।
  • “हमारा प्रेम सदा बना रहे” जैसे मंत्र बोलते हुए पूजा करें।
  • भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की आराधना करें।

वट सावित्री व्रत हिंदू धर्म का एक पावन पर्व है, जो पति-पत्नी के अटूट बंधन को दर्शाता है।

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