Nagdwari Temple Pachmarhi: सतपुड़ा की रानी कही जाने वाली पचमढ़ी की घनी पहाड़ियों और हरे-भरे जंगलों के बीच स्थित नागद्वार मंदिर नागपंचमी के बाद मंगलवार को एक साल के लिए बंद हो जाएगा।
इस रहस्यमयी स्थान के बारे में मान्यता है कि यह सीधे नागलोक तक जाता है। इस स्थान को नागद्वार या नागद्वारी मंदिर भी कहा जाता है।
इस साल 19 जुलाई से शुरू हुई 10 दिन की यात्रा के दौरान लगभग 6 लाख श्रद्धालुओं ने नागदेवता के दर्शन किए।
अब अगले साल नागपंचमी तक यह मंदिर बंद रहेगा।
यहां पहुंचने के लिए श्रद्धालुओं को 7 खतरनाक पहाड़ियों को पार करना पड़ता है, घने जंगलों से गुजरना पड़ता है और 16 किलोमीटर की पैदल यात्रा करनी पड़ती है।
आइए जानते हैं इसके बारे में सबकुछ…

क्यों खास है नागद्वारी?
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नागद्वारी को “कैलाश पर्वत के बाद भगवान शिव का दूसरा घर” माना जाता है।
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मान्यता है कि यहां दर्शन करने से कालसर्प दोष दूर होता है और मनोकामनाएँ पूरी होती हैं।
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कई भक्त संतान प्राप्ति की कामना लेकर यहाँ आते हैं।
16 किलोमीटर की दुर्गम यात्रा, दो दिन लगते हैं
नागद्वारी मंदिर तक पहुंचने के लिए श्रद्धालुओं को 16 किलोमीटर की पैदल यात्रा करनी पड़ती है।
यह रास्ता इतना मुश्किल है कि इसे पूरा करने में दो दिन लग जाते हैं।
यात्रा के दौरान बारिश, कीचड़ और जंगली जानवरों का खतरा बना रहता है।
फिर भी, भक्तों का उत्साह कम नहीं होता।

35 फीट लंबी गुफा में होते हैं नाग देवता के दर्शन
जब श्रद्धालु इस कठिन यात्रा को पूरा कर लेते हैं, तो उन्हें 35 फीट लंबी एक गुफा दिखाई देती है।
मान्यता है कि यह गुफा नागलोक का प्रवेश द्वार है।
इस गुफा के अंदर नाग देवता की पूजा की जाती है।
लोगों का मानना है कि यहां सच्चे मन से मांगी गई हर इच्छा पूरी होती है।
सावन में होती है यात्रा, अमरनाथ से तुलना
नागद्वारी यात्रा सावन के महीने में ही होती है, जिस कारण इसे मध्य प्रदेश का अमरनाथ भी कहा जाता है।
जहां अमरनाथ की यात्रा हिमालय की ऊंची चोटियों पर होती है, वहीं नागद्वारी सतपुड़ा की घनी पहाड़ियों में स्थित है।
दोनों ही यात्राएं भक्ति और साहस का अनोखा संगम हैं।

100 साल पुरानी परंपरा, मुगलकाल से जुड़ा इतिहास
नागद्वारी यात्रा की परंपरा 100 साल से भी पुरानी है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान शिव ने भस्मासुर से बचने के लिए अपने गले का नाग यहीं छोड़ा था, जिसके बाद यह स्थान नागदेवता का निवास बन गया।
इतिहासकारों के अनुसार, मुगलकालीन दस्तावेजों और ब्रिटिश अधिकारी कैप्टन जेम्स फॉरसिथ की किताब “Highlands of Central India” में भी इस गुफा का उल्लेख मिलता है।

10 दिन के लिए खुलता है मंदिर
नागद्वारी मंदिर सतपुड़ा टाइगर रिजर्व के कोर जोन में स्थित है, जहां आम दिनों में प्रवेश वर्जित है।
सावन में सिर्फ 10 दिन के लिए नागपंचमी तक ही श्रद्धालुओं के लिए यह मार्ग खोला जाता है।
इस दौरान प्रशासन यात्रियों की सुरक्षा के लिए विशेष इंतजाम करता है।
महाराष्ट्र और एमपी के भक्तों की अटूट आस्था
नागद्वारी मंदिर में मध्य प्रदेश के नर्मदापुरम, बैतूल, छिंदवाड़ा और महाराष्ट्र के कई जिलों से भक्त आते हैं।
नागपंचमी के मौके पर यहां 10 दिनों तक मेला लगता है।
प्रशासन भी श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए 800 से 1000 पुलिसकर्मियों की तैनाती करता है।
नागपंचमी पर उमड़ता है श्रद्धालुओं का सैलाब
हर साल नागपंचमी के अवसर पर यहां विशाल मेले का आयोजन होता है।
इस दौरान हजारों की संख्या में श्रद्धालु नाग देवता के दर्शन के लिए पहुंचते हैं।
मान्यता है कि यहां पूजा करने से नागदेवता भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं।
नागद्वारी की यात्रा को मध्य प्रदेश की छोटी अमरनाथ यात्रा भी कहा जाता है, क्योंकि यहां की चढ़ाई उतनी ही कठिन है।
सतपुड़ा टाइगर रिजर्व के बीच स्थित है यह पवित्र स्थल
नागद्वारी मंदिर सतपुड़ा टाइगर रिजर्व के घने जंगलों के बीच स्थित है, इसलिए यहां जंगली जानवरों का खतरा भी बना रहता है।
फिर भी, भक्तों की आस्था के आगे सभी चुनौतियां छोटी पड़ जाती हैं।

नागद्वारी मंदिर न सिर्फ एक धार्मिक स्थल है, बल्कि यह रोमांच और आस्था का अनूठा संगम भी है।
अगर आप एडवेंचर और स्पिरिचुअल टूरिज्म का अनुभव लेना चाहते हैं, तो नागद्वारी की यात्रा जरूर करें।
यहां की रहस्यमयी गुफा, खतरनाक रास्ते और अद्भुत प्राकृतिक सौंदर्य आपको हैरान कर देंगे।